तुम मुझसे ख़फ़ा हो क्यों?
तुम्हारा मौसम क्यों रुखा सा है अब?
गुलाबों सी गीली हँसी रही है हमेशा तुम्हारी
सिर्फ किताबों को न मेहकाओ अब।
साकेत
तुम्हारा मौसम क्यों रुखा सा है अब?
गुलाबों सी गीली हँसी रही है हमेशा तुम्हारी
सिर्फ किताबों को न मेहकाओ अब।
ख़फ़ा तो एक पल की रिमझिम बरसात थी
जो खुशियाँ ज़माने में फ़ैला गयी
मेरे मौसम से मैं नहीं हूँ सिर्फ फ़ैज़ी अब
मेरी क़िताबें ही नहीं, मेरी क़लम ही नहीं
मेरा सारा वजूद मेहेकता है
मेहसूस करो मेरे दिल को अपने दिल में
खुशबू ही खुशबू बस मिलेगी।
साकेत